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ज़िन्दगी के फलसफों की रूमानियत भी कमाल की होती है ।

 ज़िन्दगी के फलसफों की रूमानियत भी कमाल की होती है ।

कहते हैं-

दिल में मुहब्बत के ज़ज्बात लिये हम तो मिलते हैं अक्सर सबसे, कहाँ पसंद आयेंगे ये ज़ज्बात उनको जिनकी फ़ितरत में बेवफाई है ।

तेरे फ़ितरत में कदर नहीं सच्ची मुहब्बत की,यक़ीन कर मेरे दोस्त वो ताउम्र तुझे नसीब न होगी ।

इश्क,मुहब्बत ये ज़ज्बा है खुदाई,सजदे में सर झुकाता हूँ,के नसीब मेरा बुलंद है । ग़ुलाम हूँ मैं उस ख़ुदा का जिसकी रहमत ने महफ़ूज़ रखा मेरे जज्बों को तेरी नज़र से ।


फेहरिस्त मैंने देखी उन आशिकों की जब,तब समझा उनके चाहतों की फितरत क्या है ।

क्या खूब देखा हमने कि, लोग कैसे इस्तेमाल करते हैं आपका ,ज़रूरतें उनकी खत्म होते हीं रंग बदलते हैं कमाल के ।


वो इक झूठ तेरा वज़ूद-ए-ज़िदगी मिटने न देती,

क्या हासिल हुआ ऐ दोस्त मुझे फ़ना करके।

ग़म ज़दा शेरों का मुझे शौक नहीं मेरे दोस्तों ,पर लिखने जब बैठता हूँ बिखरे हुए चंद यादें सिमट आती हैं ।

तारीफ़ के क़ाबिल तो हमेशा से थे हम मगर , गुरूर -ए -हुस्न ने बड़ा रूसवा किया ।

परख होती गर सख्शियत की उसे तो,कोहिनूर खोने का मलाल न रहता ।


मुहब्बत की समझ कहाँ रहती है उम्र -ए -ज़वानी में,जब समझ आती है देर हो जाती है ।

मैं था,मेरा वज़ूद था पर वक्त अपना कभी न था ।मेरे आग़ोश की बदनसीबी तो देखिये ,इश्क तो सच्ची थी पर जिसके बाब़त किया वो बेरहम था ।

जो हिल जाउँ हवाओं के रुख से मैं वो किरदार नहीं,तेरी ख्वाहिश है गर मुझे मिटाने की,तो क़यामत तक तुझे साथ मेरे चलना होगा ।

love wali shayri

लगाए तोहमतें जिसने मेरे इरादों पर ,उसे दरकार क्या मेरे अल्फाजों की। मगर हैरां हूँ कि वो कि रोज़ ढ़ूँढ़ता है मेरे कदमों के निशां ,क्यूँ हर वक्त की तन्हाई में।


बीते लम्हों के साथ ज़िन्दगी कतरा-कतरा गुजरती गयी ,पर खुशनसीब हूँ के साये में तेरे हर लम्हा ज़न्नत था ।


वो कहते थे हमसे कहीं नहीं हूँ मैं ,तो नज़र क्यूँ ढ़ूँढती है मेरी परछाइयों के निशां। 

love waki shayri

मैने देखा है हर बार जब भी गुजरा हूँ उन रस्तों से,एक क़यामत की तपिश है जो मेरे रस्तों की है मुरीद ।

देखता हूँ जमाने में हैं ये बंदिशे तमाम, जाने क्यूँ ये जहाँ बंदिशें कुबूलती है ।

तू इंतज़ार करता है ये एहसास है मुझे पर दौर-ए-मशरूफ़ियत की मज़बूरियाँ कुछ और हैं।

love wali shayri

फ़िक्र जमाने के बदनियती की नहीं ,खुद के जज्बों की करता हूँ मैं ।दौर ग़मों के तमाम झेले हैं इस कदर,के उस दौर के लम्हें भी इश्क करती है हमसे ।

मेरे ज़िन्दगी का रंग आसमानी है ,फिर भी क्यूँ ये आसमान बरसता नहीं ।बीती है उम्र तमाम इस कदर ,के रंगों के पैमाने तमाम छलके नहीं अभी तक ।


मैं वो दहशत नहीं जो तुझको बर्बाद कर दूँ,खुदायी इश्क के भी अपने उसूल होते हैं ।


मेरी नफरत ने तेरे दिल में एक खास जगह हासिल कर ली,तू बेख़बर थी जबकि मुझको वो मुकाम मिल गया।


बेख़बर है मेरा दोस्त के वो जानता है,उसकी रूसवाईयाँ भी गले मेरे पहले लगती हैं ।

मैं वो शय नहीं जो सरेआम तेरी रूसवाईयों का सबब बन जाउँ,खुद पर यकीं रख  के दामन का सितारा हूँ मैं ।


तेरा गुरूर इस कदर चाहेगा तुझे ,कि चाहत के लिए ताउम्र तू मोहताज रहे।जिस दौर में तू बेख़बर है मुझे रूसवा करके याद रख के कई दौर अभी बाकी हैं ज़िन्दगी के ।


क्यूँ लिखता हूँ मैं तन्हा इस खामोशी में,क्या ज़माने को ज़रूरत है मेरे अल्फाजों की ।


वक्त से कुछ लम्हे चुराये थे हमने बड़ी मशक्कत से,पर ऐसी नाकद्री मिलेगी सौगात में मालूम न थी ।

थोड़ा ठहर जा ऐ दोस्त के  किस्मत में ,वक्त का ख़जाने की भी एक हद होती है ।


मेरी फितरत में वो नुख्श नहीं जो जख्मी करे किसी को ,हमने तो दिल जोड़े हैं खो कर अपना वज़ूद ।
हालात़ के हाथों मज़बूर तो बहुत थे पर,दोस्तों के लिए वक्त़ का वो हर लम्हा बड़ी सिद्दत से जोड़े हमने ।

मेरी आदत है थोड़ी दूर तलक जाने की,मुझे डर है के मेरा दोस्त थक न जाए कहीं ।

लुटा के वक्त जिंदगी के हमने बहुत ख़ूब ,किसी  बुझते हुए चिराग़ को रौशन रखा ।


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